बाग़

Posted on
  • by
  • The Straight path
  • in
  • आदमी जवानी की उम्र में बाग़ लगाता है ताकी बुढ़ापे की उम्र में उसका फल खाए, फिर वह शख्स कैसा बदनसीब है जिसका हरा-भरा बाग़ उसकी आख़िरी उम्र में ऐन उस वक़्त बर्बाद हो जाए |
    जबकि वह सबसे ज़्यादा उसका मोहताज हो और उसके लिए वह वक़्त भी ख़त्म हो चूका हो जबकि वह ना बाग़ लगाए, उसे नए सिरे से तैयार करे, क्या रियाकारी का यही हासिल नहीं है... ?


    0 comments:

    Post a Comment

     
    Copyright (c) 2010. The Straight Path All Rights Reserved.