तौबा...



जब हम से कोई गलती हो जाय और हम उस गलती को मानने के लिए तैयार ना हो बल्कि अपनी गलती को सही साबित करने की कोशिशि में लग जाय और अपने साथियो की हिमायत से खुद उन लोगों से लड़ने लगे जो हमें हमारी गलती से आगाह कर रहे है जब हम अपनी गलती पर इस तरह अकड़ते है और जो लोग हमारा साथ देते है तो हम और हमारे हिमायती अल्लाह के नज़दीक बदतरीन मुजरिम हो जाते है हम अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए जिन अल्फाज़ का सहारा लेते है वह अलफ़ाज़ आख़िरत में बिलकुल बे-हैसियत साबित होंगे और जिन हिमायतियों पर हम भरोसा और घमंड कर रहे है वह हमारे लिए कुछ काम ना आ सकेंगे|

गलती को मानकर तौबा करना बेहतरीन अमल है |

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सहुलियतें



अल्लाह का एहसान है कि उसने इंसान / हमें वजूद अता किया और फिर यु ही नहीं छोड़ दिया, हमें रहने को ऐसी ज़मीन दी जो इंसान के लिए बेहद उम्दा / अनुकूल है, बात सिर्फ इतनी नहीं बल्कि इससे बहुत आगे की है, इंसान / हम हर वक़्त ऐसी नाज़ुक हालत में रहते है के कभी भी मौत आ जाय और इंसान को कायनात के मालिक के सामने हिसाब-किताब के लिए पेश कर दिया जाए| इन सब बातों का तकाज़ा है के इंसान पुरे तौर पर अल्लाह का हो जाए, ज़िन्दगी के मकसद को समझे, गौर करे, फिक्र करे, सहुलियतें जुटाना ही तो ज़िन्दगी नहीं |

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रहबर ...

जो लोग सारी दुनिया को राह दिखाने वाले थे
क्या वो आज खुद भटक रहे है .... ?

कुरआन को इमाम बनाना एकमात्र रास्ता है, जिसका इमाम कुरआन है वही हक पर है, बाक़ी दुनियापरस्तों की पहचान इतनी मुश्किल भी नहीं ........

दरअस्ल हमसे दुनिया की लाज्ज़तें नहीं छूट रही !



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माबूद ..

इंसान अपनी फ़ितरत और अपने हालात के लिहाज़ से एक इसी मख्लूक है जो हमेशा अपने लिए एक सहारा चाहता है, एक एसी हस्ती जो उसकी कमियों की तलाफ़ी करे, और उसके लिए एतमाद और यकीन की बुनियाद हो, किसी को इस हैसियत से अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना अपना माबूद बनाना है |
इस मौजूदा दुनिया में अल्लाह नज़र नहीं आता,
इसलिए इंसान आमतौर पर नज़र आने वाली हस्तियों में से किसी हस्ती को वह मकाम दे देता है जो दरअसल अल्लाह का होना चाहिए |
ऐसा इसलिए भी होता है की इंसान के इर्द-गिर्द कुछ ज़ाहिरी रौनक देखकर लोग उसे बड़ा समझ लेते है और कोई अपने ग़ैर मामूली खूबियों से लोगो को मुतास्सिर कर लेता है, और भी बहुत वजह है |
मगर फिक्र की बात ये है लोग अल्लाह के सिवा को अपना माबूद बना लेता है ऐसा करना हमेशा की नाकामयाबी है |

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बाग़

आदमी जवानी की उम्र में बाग़ लगाता है ताकी बुढ़ापे की उम्र में उसका फल खाए, फिर वह शख्स कैसा बदनसीब है जिसका हरा-भरा बाग़ उसकी आख़िरी उम्र में ऐन उस वक़्त बर्बाद हो जाए |
जबकि वह सबसे ज़्यादा उसका मोहताज हो और उसके लिए वह वक़्त भी ख़त्म हो चूका हो जबकि वह ना बाग़ लगाए, उसे नए सिरे से तैयार करे, क्या रियाकारी का यही हासिल नहीं है... ?


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दाई

किसी को अल्लाह की तरफ़ से सच्चाई हासिल हो और वह उसका दाई बनकर खड़ा हो जाय तो लोग उसके मुखालिफ़ बन जाते है क्योके उसके आह्वान में लोगो को अपनी हैसियत का नकार दिखाई देने लगता है |


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दस्तरख्वान

दुनिया दो किस्म की गिज़ाओ का दस्तरख्वान :
एक इंसान वह है : जिसकी रूह की गिज़ा यह है के वह अपनी ज़ात को नुमाया होते हुवे देखे दुनिया की रौनके अपने इर्द-गिर्द पाकर उसे ख़ुशी हासिल होती हो, माद्दी साजोसामान का मालिक होकर वह अपने को कामयाब समझता है, ऐसा आदमी खुदा और आखिरत को भूला हुवा है | उसके सामने खुदा की बात आयगी तो वह उसे ग़ैर अहम समझ कर नज़रअंदाज़ कर देग़ा वह उसके साथ ऐसा सरसरी सलूक करेगा जैसे वह कोई संजीदा मामला ना हो बल्कि महज़ खेल तमाशा हो, ऐसे आदमी के लिए आख़िरत के इनामात में कोई हिस्सा नहीं |
दूसरा इंसान वह है : जो गैब की हकीकतों में गुम रहा हो, जिसकी रूह को आखिरत की याद में लज्ज़त मिली हो, जिसकी गिज़ा ये रही हो के वो खुदा की याद में जिया हो और खुदा की फ़जाओ में सांस लेता हो, यही वह इंसान है जिसके लिए आख़िरत रिज्क का दस्तरख्वान बनेगी, वह जन्नत के बागों में अपने लिए ज़िन्दगी का सामान हासिल कर लेगा, उसने गैब के आलम में खुदा को पाया था इसलिए इस ज़ाहिरी आलम में भी वो खुदा को पा लेगा |
हमारा दस्तरख्वान क्या है .... ?

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सिफारिश

कायनात में मुख्तलिफ किस्म की चीज़े है इल्मी मुताला बताता है के इन चीजों का ज़हूर एक ही वक़्त में नहीं हुवा बल्कि एक के बाद एक हुवा है, कायनात का मुताला बताता है की इस कायनात का निजाम हद दर्जा मोहकम नियमों के तहत चल रहा है

हर चीज़ ठीक उसी तरह अमल करती है जिस तरह सामूहिक तकाज़े के तहत उसे अमल करना चाहिए यह तरतीब इस बात का सबूत है की इस निज़ाम-ए-कायनात का एक जिंदा मुदब्बिर है, जो हर लम्हा उसका इंतज़ाम कर रहा है कायनात का ये हैरान कर देने वाला निज़ाम खुद ही पुकार रहा है की उसका मालिक इतना कामिल और इतना अज़ीम है के जिसके यहाँ किसी सिफारिशी की सिफारिश चलने का कोई सवाल ही नही | में किसी की तरफ़ इशारा नहीं कर रहा में खुद में ढूढ़ रहा हु, में गाफ़िल तो नहीं !

(अल्लाह जिसको चाहे सिफारिश की इजाज़त दे)


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शफ़क़त




मशक्कत से भरी दुनिया, ये दुनिया छोड़ दूंगा में
तेरे अनवार से रौशन वो लम्हे याद आते  है ..!!

हसद से दिल ये पुर मेरा, मुझे बर्बाद कर देगा
मुझे रौशन जहाँ के वो, ठिकाने याद आते है..!!

मेरा दिल ये रौशन था, तेरी शफ़क़त ने घेरा जब
मुझे अख़लाक़ के जलवे तुम्हारे याद आते है..!!


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चलने को तैयार होना चाहिए

पलकों में थोड़ी हया, यार होना चाहिए !!
इश्क़-ए-हक़ीक़ी से हमें, दो-चार होना चाहिए!

चेहरा बदलकर जी रहे है, लोग ज़ुल्मत में यहाँ!
खोल आँखे दिल की अब, बेदार होना चाहिए !!

हसरतें और ख्व़ाब मेरे आसुओं में गुम हुवे !!
अब हमें दुनिया से फिर, बेज़ार होना चाहिए!

बज़्म-ए-दुनिया है हक़ीर, इस से नाता तोड़ ले !!
दोस्तों फानी है ये,चलने को तैयार होना चाहिए!

एम साजिद 
 
 

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उम्मीद अमन की



इस जहाँ  से कुछ भला होता नहीं
साफ़ दिल में,कुछ छिपा होता नहीं!

चाहते  बरबाद  करती है यहाँ  
ग़ै-बियाना तो भला होता नहीं..!

छोड़ना मत उम्मीद  अमन की 
नफरतों से तो भला होता नहीं..!
एम साजिद

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