ज़िन्दगी में दख़ल

सुर्ख़ स्याही को दिल में छुपाती रही
ज़िन्दगी भर हमें वो रिझाती रही

जैसे चाहा जहाँ लोग भटका किये
नार जलवे फिर उनको दिखाती रही

दूर से मौत हम को डराती रही
इस तरफ़ ज़िन्दगी आज़माती रही

साजिशे लाख हो गम किसे है यहाँ
जब तेरी तरबियत रह दिखाती रही

दुश्मनी लोग मुझ से निभाते रहे
मुझको तालीम उनकी बचाती रही

ज़िन्दगी में दख़ल है अजल का मगर
साथ रह के वो शम्मा जलाती रही

तालिब-ए-इल्म हु याद रखना मुझे
इल्म की शम्मा रस्ता दिखाती रही

1. दुनिया, २. नार : जहन्नम की आग, 6. अजल : मौत,
-एम साजिद

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वक़त कोई नहीं



तेरे आगे चाँद-तारों की, वक़त कोई नहीं
जहाँनभर में तेरे जैसा मिलता, बशर कोई नहीं

दराज़ पलके उठाए जब वो, ताब लाता कोई नहीं
अपनी नज़रे झुका लो यारों,  उनका हमसर कोई नहीं

इस मुहब्बत से अलग मेरी, डगर कोई नहीं
तेरी राह में मिट भी जाऊं, तो फिकर कोई नहीं

-एम साजिद

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आरजू-ए-हश्र

बोझल है दिल हक़ीर सी हसरत से आपकी 
आ, आरजू-ए-हश्र को नाज़ों से थाम ले...!

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हाजतरवां...

जानता हु दुनिया की बक़ा, मुमकिन नहीं
फिर भी दिल दुनिया में लगा क्या करे...!!

जानता हु सबका हाजतरवां तो वो रब है
फिर भी दिल लोगों में लगा क्या करे...!!

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आज़माईश

ये तमाम ज़िन्दगी सलीब-ए-आज़माईश है तेरी।
गफलतों से उभर कर, सुबह-शाम कर यु बक़ा है तेरी।
-एम साजिद 

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बर्बादी...


तेरी बर्बादी के किस्से हजारो है..!!
मगर मुझ तक कोई पंहुचा ही नहीं..!!


वो हक़ायक जो इस देखने वाली आखँ से नज़र नहीं आते
वो हक़ायक उन से ज्यादा सच्चे है जो इन आँख से नज़र आते है .

बर्बादी... है उनके लिए जो हक़ से मुहँ फेर लेते है !

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तहज़ीब

तूने ज़र्रा-ज़र्रा मेरी तहज़ीब को, कर तो दिया...!!
याद रहे जिंदा है हम, दिलों की हरारत बाक़ी है अभी...!!
-एम साजिद

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राज-नीति-शास्र

अक्सर लोग आपस में राज-नीति-शास्र पर अपने विचारो का आदान-प्रदान खूब कुव्वत के साथ करते है, जिसके परिणाम में मुझे कुछ सुधार नज़र नहीं आता इसलिए इस विषय पर बात करना वक़्त की बर्बादी में से समझता हु मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता के हमारे देश में धर्म को लेकर राज-नीति एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर रही है, जिसके असरात हम आय दिन देख भी रहे है, इस घिनोनी राजनीति के ज़िम्मेदार हम खुद भी है इसको बढ़ावा जनता देती है एक इंसान दुसरे इंसान का दुश्मन कैसे हो गया ...?
क्या मुट्ठीभर नेताओं ने हमसे हमारी आत्मा अलग कर दी ... ?
क्या हमारे विचारों पर अब चंद जाहिल लोगो का क़ब्ज़ा है ...? जो मात्र अपना हित देखते है.
क्या अब हम इंसान ना रहे...?
क्या हमारा ज़मीर मर चूका है...?
क्या इतनी दुश्मनी और वहशीपन जानवरों में भी होती है...? या हम उनसे भी आगे निकल चुके है.

इतना तो इल्म लाज़मी है के हम उन लोगो को पहचान सके जो हमें हमारे भाइयो के खिलाफ़ भड़काते है... देश की हितकर लोगो को चाहिए अमन चैन के लिए कोशिश कर !

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विसाल...

अजीब फ़ितरत के लोग देखें, जिंदा है इस बुग्ज़ के माहौल में !
फ़िक्र-ए-जहाँ तो रखते है, मगर विसाल से अनजान है !

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