दुनिया दो किस्म की गिज़ाओ का दस्तरख्वान :
एक इंसान वह है : जिसकी रूह की गिज़ा यह है के वह अपनी ज़ात को नुमाया होते हुवे देखे दुनिया की रौनके अपने इर्द-गिर्द पाकर उसे ख़ुशी हासिल होती हो, माद्दी साजोसामान का मालिक होकर वह अपने को कामयाब समझता है, ऐसा आदमी खुदा और आखिरत को भूला हुवा है | उसके सामने खुदा की बात आयगी तो वह उसे ग़ैर अहम समझ कर नज़रअंदाज़ कर देग़ा वह उसके साथ ऐसा सरसरी सलूक करेगा जैसे वह कोई संजीदा मामला ना हो बल्कि महज़ खेल तमाशा हो, ऐसे आदमी के लिए आख़िरत के इनामात में कोई हिस्सा नहीं |
दूसरा इंसान वह है : जो गैब की हकीकतों में गुम रहा हो, जिसकी रूह को आखिरत की याद में लज्ज़त मिली हो, जिसकी गिज़ा ये रही हो के वो खुदा की याद में जिया हो और खुदा की फ़जाओ में सांस लेता हो, यही वह इंसान है जिसके लिए आख़िरत रिज्क का दस्तरख्वान बनेगी, वह जन्नत के बागों में अपने लिए ज़िन्दगी का सामान हासिल कर लेगा, उसने गैब के आलम में खुदा को पाया था इसलिए इस ज़ाहिरी आलम में भी वो खुदा को पा लेगा |
हमारा दस्तरख्वान क्या है .... ?
एक इंसान वह है : जिसकी रूह की गिज़ा यह है के वह अपनी ज़ात को नुमाया होते हुवे देखे दुनिया की रौनके अपने इर्द-गिर्द पाकर उसे ख़ुशी हासिल होती हो, माद्दी साजोसामान का मालिक होकर वह अपने को कामयाब समझता है, ऐसा आदमी खुदा और आखिरत को भूला हुवा है | उसके सामने खुदा की बात आयगी तो वह उसे ग़ैर अहम समझ कर नज़रअंदाज़ कर देग़ा वह उसके साथ ऐसा सरसरी सलूक करेगा जैसे वह कोई संजीदा मामला ना हो बल्कि महज़ खेल तमाशा हो, ऐसे आदमी के लिए आख़िरत के इनामात में कोई हिस्सा नहीं |
दूसरा इंसान वह है : जो गैब की हकीकतों में गुम रहा हो, जिसकी रूह को आखिरत की याद में लज्ज़त मिली हो, जिसकी गिज़ा ये रही हो के वो खुदा की याद में जिया हो और खुदा की फ़जाओ में सांस लेता हो, यही वह इंसान है जिसके लिए आख़िरत रिज्क का दस्तरख्वान बनेगी, वह जन्नत के बागों में अपने लिए ज़िन्दगी का सामान हासिल कर लेगा, उसने गैब के आलम में खुदा को पाया था इसलिए इस ज़ाहिरी आलम में भी वो खुदा को पा लेगा |
हमारा दस्तरख्वान क्या है .... ?
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