
सुर्ख़ स्याही को दिल में छुपाती रही ज़िन्दगी भर हमें वो रिझाती रही
जैसे चाहा जहाँ लोग भटका किये नार जलवे फिर उनको दिखाती रही
दूर से मौत हम को डराती रही इस तरफ़ ज़िन्दगी आज़माती रही
साजिशे लाख हो गम किसे है यहाँ जब तेरी तरबियत रह दिखाती रही
दुश्मनी लोग मुझ से निभाते रहे मुझको तालीम...