ज़िन्दगी में दख़ल

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  • सुर्ख़ स्याही को दिल में छुपाती रही
    ज़िन्दगी भर हमें वो रिझाती रही

    जैसे चाहा जहाँ लोग भटका किये
    नार जलवे फिर उनको दिखाती रही

    दूर से मौत हम को डराती रही
    इस तरफ़ ज़िन्दगी आज़माती रही

    साजिशे लाख हो गम किसे है यहाँ
    जब तेरी तरबियत रह दिखाती रही

    दुश्मनी लोग मुझ से निभाते रहे
    मुझको तालीम उनकी बचाती रही

    ज़िन्दगी में दख़ल है अजल का मगर
    साथ रह के वो शम्मा जलाती रही

    तालिब-ए-इल्म हु याद रखना मुझे
    इल्म की शम्मा रस्ता दिखाती रही

    1. दुनिया, २. नार : जहन्नम की आग, 6. अजल : मौत,
    -एम साजिद

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