अक्सर लोग आपस में राज-नीति-शास्र पर अपने विचारो का आदान-प्रदान खूब
कुव्वत के साथ करते है, जिसके परिणाम में मुझे कुछ सुधार नज़र नहीं आता
इसलिए इस विषय पर बात करना वक़्त की बर्बादी में से समझता हु मगर इस बात से
इनकार नहीं किया जा सकता के हमारे देश में धर्म को लेकर राज-नीति एक गंभीर
समस्या उत्पन्न कर रही है, जिसके असरात हम आय दिन देख भी रहे है, इस घिनोनी
राजनीति के ज़िम्मेदार हम खुद भी है इसको बढ़ावा जनता देती है एक इंसान
दुसरे इंसान का दुश्मन कैसे हो गया ...?
क्या मुट्ठीभर नेताओं ने हमसे हमारी आत्मा अलग कर दी ... ?
क्या हमारे विचारों पर अब चंद जाहिल लोगो का क़ब्ज़ा है ...? जो मात्र अपना हित देखते है.
क्या अब हम इंसान ना रहे...?
क्या हमारा ज़मीर मर चूका है...?
क्या इतनी दुश्मनी और वहशीपन जानवरों में भी होती है...? या हम उनसे भी आगे निकल चुके है.
क्या मुट्ठीभर नेताओं ने हमसे हमारी आत्मा अलग कर दी ... ?
क्या हमारे विचारों पर अब चंद जाहिल लोगो का क़ब्ज़ा है ...? जो मात्र अपना हित देखते है.
क्या अब हम इंसान ना रहे...?
क्या हमारा ज़मीर मर चूका है...?
क्या इतनी दुश्मनी और वहशीपन जानवरों में भी होती है...? या हम उनसे भी आगे निकल चुके है.
इतना तो इल्म लाज़मी है के हम उन लोगो को पहचान सके जो हमें हमारे भाइयो के
खिलाफ़ भड़काते है... देश की हितकर लोगो को चाहिए अमन चैन के लिए कोशिश कर !
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