माबूद ..
इंसान अपनी फ़ितरत और अपने हालात के लिहाज़ से एक इसी मख्लूक है जो हमेशा
अपने लिए एक सहारा चाहता है, एक एसी हस्ती जो उसकी कमियों की तलाफ़ी करे, और
उसके लिए एतमाद और यकीन की बुनियाद हो, किसी को इस हैसियत से अपनी ज़िन्दगी
में शामिल करना अपना माबूद बनाना है |
इस मौजूदा दुनिया में अल्लाह नज़र नहीं आता,
इसलिए इंसान आमतौर पर नज़र आने वाली हस्तियों में से किसी हस्ती को वह मकाम दे देता है जो दरअसल अल्लाह का होना चाहिए |
ऐसा इसलिए भी होता है की इंसान के इर्द-गिर्द कुछ ज़ाहिरी रौनक देखकर लोग उसे बड़ा समझ लेते है और कोई अपने ग़ैर मामूली खूबियों से लोगो को मुतास्सिर कर लेता है, और भी बहुत वजह है |
मगर फिक्र की बात ये है लोग अल्लाह के सिवा को अपना माबूद बना लेता है ऐसा करना हमेशा की नाकामयाबी है |
इस मौजूदा दुनिया में अल्लाह नज़र नहीं आता,
इसलिए इंसान आमतौर पर नज़र आने वाली हस्तियों में से किसी हस्ती को वह मकाम दे देता है जो दरअसल अल्लाह का होना चाहिए |
ऐसा इसलिए भी होता है की इंसान के इर्द-गिर्द कुछ ज़ाहिरी रौनक देखकर लोग उसे बड़ा समझ लेते है और कोई अपने ग़ैर मामूली खूबियों से लोगो को मुतास्सिर कर लेता है, और भी बहुत वजह है |
मगर फिक्र की बात ये है लोग अल्लाह के सिवा को अपना माबूद बना लेता है ऐसा करना हमेशा की नाकामयाबी है |
बाग़
आदमी जवानी की उम्र में बाग़ लगाता है ताकी बुढ़ापे की उम्र में उसका फल खाए, फिर वह शख्स कैसा बदनसीब है जिसका हरा-भरा बाग़ उसकी आख़िरी उम्र में ऐन उस वक़्त बर्बाद हो जाए |
जबकि वह सबसे ज़्यादा उसका मोहताज हो और उसके लिए वह वक़्त भी ख़त्म हो चूका हो जबकि वह ना बाग़ लगाए, उसे नए सिरे से तैयार करे, क्या रियाकारी का यही हासिल नहीं है... ?
जबकि वह सबसे ज़्यादा उसका मोहताज हो और उसके लिए वह वक़्त भी ख़त्म हो चूका हो जबकि वह ना बाग़ लगाए, उसे नए सिरे से तैयार करे, क्या रियाकारी का यही हासिल नहीं है... ?
दस्तरख्वान
दुनिया दो किस्म की गिज़ाओ का दस्तरख्वान :
एक इंसान वह है : जिसकी रूह की गिज़ा यह है के वह अपनी ज़ात को नुमाया होते हुवे देखे दुनिया की रौनके अपने इर्द-गिर्द पाकर उसे ख़ुशी हासिल होती हो, माद्दी साजोसामान का मालिक होकर वह अपने को कामयाब समझता है, ऐसा आदमी खुदा और आखिरत को भूला हुवा है | उसके सामने खुदा की बात आयगी तो वह उसे ग़ैर अहम समझ कर नज़रअंदाज़ कर देग़ा वह उसके साथ ऐसा सरसरी सलूक करेगा जैसे वह कोई संजीदा मामला ना हो बल्कि महज़ खेल तमाशा हो, ऐसे आदमी के लिए आख़िरत के इनामात में कोई हिस्सा नहीं |
दूसरा इंसान वह है : जो गैब की हकीकतों में गुम रहा हो, जिसकी रूह को आखिरत की याद में लज्ज़त मिली हो, जिसकी गिज़ा ये रही हो के वो खुदा की याद में जिया हो और खुदा की फ़जाओ में सांस लेता हो, यही वह इंसान है जिसके लिए आख़िरत रिज्क का दस्तरख्वान बनेगी, वह जन्नत के बागों में अपने लिए ज़िन्दगी का सामान हासिल कर लेगा, उसने गैब के आलम में खुदा को पाया था इसलिए इस ज़ाहिरी आलम में भी वो खुदा को पा लेगा |
हमारा दस्तरख्वान क्या है .... ?
एक इंसान वह है : जिसकी रूह की गिज़ा यह है के वह अपनी ज़ात को नुमाया होते हुवे देखे दुनिया की रौनके अपने इर्द-गिर्द पाकर उसे ख़ुशी हासिल होती हो, माद्दी साजोसामान का मालिक होकर वह अपने को कामयाब समझता है, ऐसा आदमी खुदा और आखिरत को भूला हुवा है | उसके सामने खुदा की बात आयगी तो वह उसे ग़ैर अहम समझ कर नज़रअंदाज़ कर देग़ा वह उसके साथ ऐसा सरसरी सलूक करेगा जैसे वह कोई संजीदा मामला ना हो बल्कि महज़ खेल तमाशा हो, ऐसे आदमी के लिए आख़िरत के इनामात में कोई हिस्सा नहीं |
दूसरा इंसान वह है : जो गैब की हकीकतों में गुम रहा हो, जिसकी रूह को आखिरत की याद में लज्ज़त मिली हो, जिसकी गिज़ा ये रही हो के वो खुदा की याद में जिया हो और खुदा की फ़जाओ में सांस लेता हो, यही वह इंसान है जिसके लिए आख़िरत रिज्क का दस्तरख्वान बनेगी, वह जन्नत के बागों में अपने लिए ज़िन्दगी का सामान हासिल कर लेगा, उसने गैब के आलम में खुदा को पाया था इसलिए इस ज़ाहिरी आलम में भी वो खुदा को पा लेगा |
हमारा दस्तरख्वान क्या है .... ?
सिफारिश
कायनात में मुख्तलिफ किस्म की चीज़े है इल्मी मुताला बताता है के इन चीजों का ज़हूर एक ही वक़्त में नहीं हुवा बल्कि एक के बाद एक हुवा है, कायनात का मुताला बताता है की इस कायनात का निजाम हद दर्जा मोहकम नियमों के तहत चल रहा है
हर चीज़ ठीक उसी तरह अमल करती है जिस तरह सामूहिक तकाज़े के तहत उसे अमल करना चाहिए यह तरतीब इस बात का सबूत है की इस निज़ाम-ए-कायनात का एक जिंदा मुदब्बिर है, जो हर लम्हा उसका इंतज़ाम कर रहा है कायनात का ये हैरान कर देने वाला निज़ाम खुद ही पुकार रहा है की उसका मालिक इतना कामिल और इतना अज़ीम है के जिसके यहाँ किसी सिफारिशी की सिफारिश चलने का कोई सवाल ही नही | में किसी की तरफ़ इशारा नहीं कर रहा में खुद में ढूढ़ रहा हु, में गाफ़िल तो नहीं !
(अल्लाह जिसको चाहे सिफारिश की इजाज़त दे)
हर चीज़ ठीक उसी तरह अमल करती है जिस तरह सामूहिक तकाज़े के तहत उसे अमल करना चाहिए यह तरतीब इस बात का सबूत है की इस निज़ाम-ए-कायनात का एक जिंदा मुदब्बिर है, जो हर लम्हा उसका इंतज़ाम कर रहा है कायनात का ये हैरान कर देने वाला निज़ाम खुद ही पुकार रहा है की उसका मालिक इतना कामिल और इतना अज़ीम है के जिसके यहाँ किसी सिफारिशी की सिफारिश चलने का कोई सवाल ही नही | में किसी की तरफ़ इशारा नहीं कर रहा में खुद में ढूढ़ रहा हु, में गाफ़िल तो नहीं !
(अल्लाह जिसको चाहे सिफारिश की इजाज़त दे)
चलने को तैयार होना चाहिए
पलकों में थोड़ी हया, यार होना चाहिए !!
इश्क़-ए-हक़ीक़ी से हमें, दो-चार होना चाहिए!
चेहरा बदलकर जी रहे है, लोग ज़ुल्मत में यहाँ!
खोल आँखे दिल की अब, बेदार होना चाहिए !!
हसरतें और ख्व़ाब मेरे आसुओं में गुम हुवे !!
अब हमें दुनिया से फिर, बेज़ार होना चाहिए!
बज़्म-ए-दुनिया है हक़ीर, इस से नाता तोड़ ले !!
दोस्तों फानी है ये,चलने को तैयार होना चाहिए!
उम्मीद अमन की
इस जहाँ से कुछ भला होता नहीं
साफ़ दिल में,कुछ छिपा होता नहीं!
चाहते बरबाद
करती है यहाँ
ग़ै-बियाना तो भला होता नहीं..!
छोड़ना मत उम्मीद अमन की
नफरतों से तो भला होता नहीं..!
एम साजिद
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