ढली साँसे

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  • तक़दीरों में तबदीली करेगा कौन  यहाँ
    ये किस जाल तूने फंसा दिया मुझ को!

    तदबीरों  ने  मेरे ज़हन  को  छोड़  दिया
    जंज़ीरों  ने  कैसा  बना दिया मुझ  को!

    कतरों सी ढली साँसे है,  खिंचती  है मेरी
    आख़री वक़्त में उसने हरा दिया मुझको!

    -एम साजिद




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