लफ्ज़ “अल्लाह” की तहक़ीक़-02
बुख़ारी व मुस्लिम में हज़रत
अबू हरैरह रज़ि० से रिवायत है की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया –अल्लाह
तआला के निन्नानवे नाम है, एक कम एक सौ, जो उन्हें याद करे जन्नती है ! तिर्मिज़ी
और इब्ने माजा की रिवायत में उन नामों की तफ़सील भी आयी है और दोनों की रिवायतों
में अलफ़ाज़ का कुछ फर्क कुछ कमी-ज़्यादती भी है ! इमाम राज़ी ने अपनी तफ़सीर में बाज़
लोगों से रिवायत की है की अल्लाह तआलाके पाँच हज़ार नाम है, एक हज़ार तो कुरानशरीफ
और सही हदीसों में है और एक हजार तौरात में और एक हजार इंजील में और हज़ार ज़बूर में
और एक हज़ार लौहे-महफूज़ में! “अल्लाह” वह नाम है जो सिवाय अल्लाह तबारक व तआला के
किसी और का नहीं, यही वजह है की आज तक अरबी भाषा के माहिरीन को यह भी मालूम नहीं
की इसका इश्तिकाक़ (यानी माददा) क्या है, इसका बाब क्या है बल्कि नहवियों की एक बड़ी
जमाअत का ख्याल है की यह ‘इस्में जामिद’ है और इसका कोई इश्तिकाक़ (माददा और निकलने
की जगह) है ही नहीं ! इमाम कुर्तुबी ने उलेमा-ए-किराम की एक बड़ी जमाअत का यह मज़हब
नकल किया है, जिनमें से हज़रत इमाम शाफ़ई, इमाम ख़त्ताबी, इमामुल-हरमैन, इमाम गज़ाली
वगैरेह है!
ख़लील और सीबवैह से रिवायत
है की “अलिफ़ लाम” इसमें लाज़िम है, इमाम खत्ताबी ने इसकी एक दलील यह दी है की “या
अल्लाह” कह सकते है मगर “या अर्रहमान” कहते किसी को नहीं सुना, अगर लफ्ज़ “अल्लाह”
में “अलिफ़ लाम” असल कलिमे का न होता तो इस पर निदा (पुकार) का लफ्ज़ ‘या’ दाख़िल न
हो सकता, क्योंकि अरबी ग्रामर के लिहाज़ से हुरुफें निदा का अलिफ़ लाम वाले इस्म
(नाम) पर दाख़िल होना जायज़ नहीं !
to be continued...
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