लफ्ज़ ‘रहमान’ व ‘रहीम’ का बयान 01
‘अर्रहमान’ ‘अर्रहीम’ ये दोनों नाम रहमत से मुश्तक़ (निकले) है! दोनों में मुबालग़ा (ज़्यादती) है!
‘रहमान’ में ‘रहीम’ से ज़्यादा मुबालग़ा (यानी सिफ़ते रहमत ज़्यादा) है ! अल्लामा इब्ने जरीर के कौल से तो मालूम होता है की गोया इस पर इत्तिफाक़ है ! बाज़ उलेमा की तफ़सीरो से भी यह मालूम होता है! हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का कौल भी इसी मायने का पहले गुज़र चूका है की ‘रहमान’ से मुराद दुनिया और में रहम करने वाला और ‘रहीम’ से मुराद आख़िरत में रहम करने वाला है ! बाज़ लोग कहते है की ‘रहमान’ मुश्तक़ नहीं है अगर यह इस तरह होता तो ‘मरहूम’ के साथ मिलता, हालाकि क़ुरआन में ‘बिल-मुअमिनी-न रहीमा’ आया है! मुबरिद कहते है की ‘रहमान’ इब्रानी नाम है अरबी नहीं!
अबू इस्हाक़ ज़ूजाज ‘मआनियुल-क़ुरआन’ में लिखते है की अहमद बिन यहया का कौल है की रहीम अरबी लफ्ज़ है और ‘रहमान’ इबरानी है! दोनों को जमा कर दिया गया है, लेकिन अबू इस्हाक़ फरमाते है की इस कौल को दिल क़ुबूल नहीं करता! कुर्तुबी रह० फ़रमाते है की इस लफ्ज़ के मुश्तक होने की दलील है की तिर्मिज़ी की सही हदीस में है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम फ़रमाते है की अल्लाह ताआला का फ़रमान है की में ‘रहमान’ हु, मैंने रहम को पैदा किया और अपने नामों से उसका नाम मुश्तक़ किया (निकाला)! इसके मिलाने वाले को में मिलाऊंगा और इसके तोड़ने वाले को में काट दूँगा! अब स्पष्ट हदीस की मुखालफ़त और इनकार करने की कोई गुंजाईश नहीं! रहा अरब के काफिरों का इस नाम से इनकार करना यह महज़ उनकी जहालत का एक करिश्मा था! इमाम कुर्तुबी कहते है की ‘रहमान’ और ‘रहीम’ के एक ही मायने है जैसे ‘नदमान’ और ‘नदीम’! अबू उबैदा का यही कौल है एक कौल यह भी है की “फ़अलान” “FAEEL” की तरह नहीं “फ़अलान” में मुबालग़ा (ज़्यादती होना) ज़रूरी होता है जैसे “गज़बान” उसी शख्स को कह सकते है जो बहुत ही गुस्से वाला हो, और “FAIEEL” सिर्फ़ “FAIEEL” (काम करने वाले) और ‘मफ़ऊल’ (जिस पर फेल वाक़े हुवा हो) के लिए भी आता है, जो मुबालगे से खाली होता है!
Islam, Tafsir ibn Kathir
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