इस दुनिया में तमाम लाज्ज़तों के साथ जो भी हालात और सहुलतें नसीब होती है वो सब महज़ इम्तिहान के वास्ते है, एक वक़्त पर जो की तय किया जा चूका है ये सारी ज़िन्दगी को कायम रखने वाली खुसुसियात ख़त्म कर दी जायंगी, ये ज़मीन सपाट और ख़ाली कर दी जायगी फिर ना तो मुझे और ना तुझे अकड़ने और घमंड में चलने की इजाज़त होगी, फिर ना तो किसी औलाद और ना किसी माल पर फ़ख्र कर सकेंगे जो माल जमा किया, ना जाने किस-किस का दिल दुखा कर वो अज़ाब-ए-कब्र बन जायगा, आफत बन कर हमें लिपट जायगा जब हम उस माल की सज़ा पा रहे होंगे तब हमारे अज़ीज़ उस ही मॉल से एश कर रहे होंगे, इस मुख़्तसर सी ज़िन्दगी का अगर हम आख़िरत कभी ना ख़त्म होने वाली ज़िन्दगी से मुकाबला कर के देखे तो इस ज़ालिम दुनिया की साँसे हकीर और कमतर लगेगी, हमने जीवन की सहूलियात की फ़िक्र को इतना बढा लिए के ये सब सोचने का वक़्त ही शामिल ऐ हाल नहीं है लेकिन अज़ीज़ो कबूतर आँखे बंद कर ले तब भी बिल्ली (मौत) उसको बक्श नहीं देती, अल्लाह ने हमें समझ / सलाहियत अता की, समझ-भूझ का इस्तेमाल कर के खुद की उसी तरह फ़िक्र करनी है जैसे भूख लगने से पहले हम पेट भरने की फ़िक्र में लग जाते है फ़िक्र भी सच्ची होती है इसलिए खाने-पीने का सामान भी मयस्सर हो ही जाता है, ऐसे ही उस लामहदूद जीवन की सच्ची लगन हमें बुलंद और कामयाब कर ही देगी!
मुहम्मद साजिद अली
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