' मर्द ' जिसका दर्द सुनने समझने वाला कोई नही, मर्द को जज़्बात, एहसासात से ख़ाली और हवस से लबरेज़ ऐसा ज़ालिम मान लिया गया है जो औरतों को घूरता है, छेड़ता है, रेप करता है, शादी भी सिर्फ़ अपनी जिस्मानी ख़्वाहिश पूरी करने के लिए करता है, दिल भरने पर तलाक़ दे देता है, फिर दूसरी शादी कर लेता है, औरतों के लिये हमेशा क़सीदे पढ़े गये, " वो मां है, बहन है, बीवी है, बेटी है " , है, बेशक है, किसे इनकार है लेकिन मर्द भी तो एक बाप है, भाई मै, शौहर है, बेटा है, या बस वो हवस का पुजारी ही है, कभी सोचा उस बाप के बारे मे जो तमाम ज़िंदगी अपनी बेटी की शादी के लिए पाई पाई जोड़ता है, पुराना सूट, पुराना स्कूटर, पुरानी घड़ी मे वक़्त गुज़ारता है, रातों को चैन से सो नही पाता, कभी सोचा उस भाई के बारे मे जो अपनी बहन को सारी दुनिया की परेशानियों से और बुरी नज़रों से महफ़ूज़ रखना चाहता है, भात, छूछक, यहाँ तक कि मरने के बाद भी समाज ने भाई पर बहन की कुछ ज़िम्मेदारियां लाद दी हैं , और वो भाई इसे अपनी ज़िम्मेदारी मान कर कर रहा है, अपनी जान तक की परवाह नही करता, वो शौहर भी तो एक मर्द है जो एक औरत को अपने दिल की रानी और घर की मालकिन बना कर रखता है , वो बेटा भी तो एक मर्द ही है जो अपनी माँ के कदमों मे दुनिया और जन्नत की ख़ुशियां ढूंढता है ,
कभी उस मर्द का दर्द भी तो महसूस कीजिये जिससे उसकी बीवी सारी तनख़्वाह छीन लेती है, महीने भर जेबख़र्च भी वो बीवी से मांगता है और इसे उसने अपना मुक़ददर मान कर सब्र कर लिया है, वो मर्द जो अपने बाप भाई मां बहन पर खुल कर ख़र्च नही कर सकता , अपने साथ नही रख सकता, मिल नही सकता और बीवी को यह सब करते देखता है बल्कि इस सब पर ख़ुश भी होकर दिखाना पड़ता है, मै तो ऐसे भी बहुत से मर्दों को जानता हूँ जो अपनी बीवी के नाजायज़ ताल्लुक़ात को जानकर भी चुप हैं , कभी उन मर्दों के लिए हमदर्दी नही जागती जो नाजायज़ ताल्लुक़ात के चलते क़त्ल कर दिये गये, रेप के झूठे इल्ज़ामों मे जैल चले गये, बदनाम हुए, ज़लील हुए, बर्बाद हो गये, प्यार मे धोखा खा कर कितनों ने ख़ुदकुशी की, कितने पागल हुए, कितने नशेड़ी बने ? कोई नही देख रहा ?
इस सबके बावजूद औरतों के लिये आवाज़ भी हमेशा मर्दों ने ही उठायी, मैने कभी किसी औरत को मर्दों के लिए आवाज़ नही उठाते देखा , मेरा कहना यह नही कि औरतों के साथ कुछ ग़लत नही हुआ, सवाल यह है कि औरतों की जनरल इमेज 'देवी' की और मर्द की 'ऱाक्षस' की क्यों बना रखी है ?
Nadeem Akhter
कभी उस मर्द का दर्द भी तो महसूस कीजिये जिससे उसकी बीवी सारी तनख़्वाह छीन लेती है, महीने भर जेबख़र्च भी वो बीवी से मांगता है और इसे उसने अपना मुक़ददर मान कर सब्र कर लिया है, वो मर्द जो अपने बाप भाई मां बहन पर खुल कर ख़र्च नही कर सकता , अपने साथ नही रख सकता, मिल नही सकता और बीवी को यह सब करते देखता है बल्कि इस सब पर ख़ुश भी होकर दिखाना पड़ता है, मै तो ऐसे भी बहुत से मर्दों को जानता हूँ जो अपनी बीवी के नाजायज़ ताल्लुक़ात को जानकर भी चुप हैं , कभी उन मर्दों के लिए हमदर्दी नही जागती जो नाजायज़ ताल्लुक़ात के चलते क़त्ल कर दिये गये, रेप के झूठे इल्ज़ामों मे जैल चले गये, बदनाम हुए, ज़लील हुए, बर्बाद हो गये, प्यार मे धोखा खा कर कितनों ने ख़ुदकुशी की, कितने पागल हुए, कितने नशेड़ी बने ? कोई नही देख रहा ?
इस सबके बावजूद औरतों के लिये आवाज़ भी हमेशा मर्दों ने ही उठायी, मैने कभी किसी औरत को मर्दों के लिए आवाज़ नही उठाते देखा , मेरा कहना यह नही कि औरतों के साथ कुछ ग़लत नही हुआ, सवाल यह है कि औरतों की जनरल इमेज 'देवी' की और मर्द की 'ऱाक्षस' की क्यों बना रखी है ?
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