1948 में मग़रिबी ताक़तों ने मिलकर फ़िलस्तीन के एक बड़े इलाक़े को अरबों से छीन कर, उस पर यहूदियों को एक मुल्क बना कर दे दिया और इज़राईल बनते ही शुरू के 19 साल यहूदियों ने मुसलसल अपने पड़ोसी अरब मुल्कों से जंग जारी रखी और 1967 में येरूशलम (बैतुल मक़दिस) पर क़ब्ज़ा कर लिया. उसके बाद से आज तक Middle East के मुस्लिम मुल्कों में अमन क़ाएम नहीं होने दिया.
यहूदियों को उरूज हासिल होना तब से शुरू हुआ है जब से उन्होंने ये फ़ैसला किया कि हम एक ख़ुदा, एक तौरात और एक शरिअत की बुनियाद पर एक क़ौम हैं. हम में कोई जर्मनी में रहता हो या अमेरिका में, नाइजिरिया में रहता हो या फ़िलीपीन्स में, हम एक क़ौम हैं. उसे *इस बात पर कामिल ईमान और यक़ीन रखना चाहिये है कि उसे एक दिन उस अरज़े मुक़द्दस, येरूशलम लौटना है, जहाँ उसका मसीहा आएगा और वो उनके लिये हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की तरह एक आलमी हुकूमत क़ाएम करेगा. वो इस बात की भी तैयारी कर रहे हैं कि उन्हें मुसलमानों के साथ एक बहुत बड़ी #आलमी जंगलड़नी है. ये तसव्वुर जब से उनके दिलों दिमाग़ में दाख़िल हुआ और बहैसियत क़ौम इस पर यक़ीन करते हुए अमल करना शुरू किया, उसके बाद उनकी तरक़्क़ी की मंज़िलें तय करने की रफ़्तार ना क़ाबिले यक़ीन हद तक तेज़ हो गई. इस तरह आलमी सहयूनी तंज़ीम की ताक़त और यूनिटी का आप अंदाज़ा कर सकते हैं. इस तरह एक नज़रिये ने हज़ारों साल दरबदर रहने वाले यहूदियों को अपना आबाई वतन लौटा दिया.
पर क्या ये दुनिया का पहला इत्तेहाद का नज़रिया था जो कामयाब हुआ ?
हरगिज़ नहीं !
सबसे पहले ये नज़रिया हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रियासते मदीना की बुनियाद रखते हुए पेश किया : तमाम मुसलमान आपस में भाई भाई हैं और इसलाम की बुनियाद पर वो एक क़ौम हैं. और फिर दुनिया ने देखा कि इस नज़रिये ने उस वक़्त की सुपर पॉवर क़ैसर (Rome) व किसरा (Iran) को शिकस्त दी. और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आख़िरी ख़ुत्बे में फ़रमाया : किसी अरबी को अजमी पर, किसी गोरे को काले पर कोई फ़ज़ीलत नहीं. और फिर दुनिया ने इस नज़रिये और आपसी इत्तेहाद की ताक़त का नतीजा दुनिया के हर कोने तक इसलाम पहुँचने की सूरत में देखा. नज़रिया इत्तेहादे उम्मत, दुनिया का कामयाब तरीन नज़रिया है. दुशमनाने इसलाम जानते हैं कि जब तक हम बिखरे रहेंगें तब तक हम वैसे ही ज़लील होते रहेंगें जिस तरह हज़ारों साल तक यहूदी रहे थे !!!!
यहूदियों को उरूज हासिल होना तब से शुरू हुआ है जब से उन्होंने ये फ़ैसला किया कि हम एक ख़ुदा, एक तौरात और एक शरिअत की बुनियाद पर एक क़ौम हैं. हम में कोई जर्मनी में रहता हो या अमेरिका में, नाइजिरिया में रहता हो या फ़िलीपीन्स में, हम एक क़ौम हैं. उसे *इस बात पर कामिल ईमान और यक़ीन रखना चाहिये है कि उसे एक दिन उस अरज़े मुक़द्दस, येरूशलम लौटना है, जहाँ उसका मसीहा आएगा और वो उनके लिये हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की तरह एक आलमी हुकूमत क़ाएम करेगा. वो इस बात की भी तैयारी कर रहे हैं कि उन्हें मुसलमानों के साथ एक बहुत बड़ी #आलमी जंगलड़नी है. ये तसव्वुर जब से उनके दिलों दिमाग़ में दाख़िल हुआ और बहैसियत क़ौम इस पर यक़ीन करते हुए अमल करना शुरू किया, उसके बाद उनकी तरक़्क़ी की मंज़िलें तय करने की रफ़्तार ना क़ाबिले यक़ीन हद तक तेज़ हो गई. इस तरह आलमी सहयूनी तंज़ीम की ताक़त और यूनिटी का आप अंदाज़ा कर सकते हैं. इस तरह एक नज़रिये ने हज़ारों साल दरबदर रहने वाले यहूदियों को अपना आबाई वतन लौटा दिया.
पर क्या ये दुनिया का पहला इत्तेहाद का नज़रिया था जो कामयाब हुआ ?
हरगिज़ नहीं !
सबसे पहले ये नज़रिया हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रियासते मदीना की बुनियाद रखते हुए पेश किया : तमाम मुसलमान आपस में भाई भाई हैं और इसलाम की बुनियाद पर वो एक क़ौम हैं. और फिर दुनिया ने देखा कि इस नज़रिये ने उस वक़्त की सुपर पॉवर क़ैसर (Rome) व किसरा (Iran) को शिकस्त दी. और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आख़िरी ख़ुत्बे में फ़रमाया : किसी अरबी को अजमी पर, किसी गोरे को काले पर कोई फ़ज़ीलत नहीं. और फिर दुनिया ने इस नज़रिये और आपसी इत्तेहाद की ताक़त का नतीजा दुनिया के हर कोने तक इसलाम पहुँचने की सूरत में देखा. नज़रिया इत्तेहादे उम्मत, दुनिया का कामयाब तरीन नज़रिया है. दुशमनाने इसलाम जानते हैं कि जब तक हम बिखरे रहेंगें तब तक हम वैसे ही ज़लील होते रहेंगें जिस तरह हज़ारों साल तक यहूदी रहे थे !!!!
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